Glory to the word Guru

गुरु' शब्द में 'गु' का अर्थ है 'अंधकार' और 'रु' का अर्थ है 'प्रकाश' अर्थात गुरु का शाब्दिक अर्थ हुआ 'अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने वाला मार्गदर्शक'। सही अर्थों में गुरु वही है जो अपने शिष्यों का मार्गदर्शन करे और जो उचित हो उस ओर शिष्य को आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करे। गुरु उसको कहते हैं जो वेद-शास्त्रों का गृणन (उपदेश) करता है अथवा स्तुत होता है। मनुस्मृति में गुरु की परिभाषा निम्नांकित है- निषेकादीनि कार्माणि य: करोति यथाविधि।सम्भावयति चान्नेन स विप्रो गुरुरुच्यते।। गुरु ग्रंथ साहिब - जो विप्र निषक आदि संस्कारों को यथा विधि करता है और अन्न से पोषण करता है वह 'गुरु' कहलाता है। इस परिभाषा से पिता प्रथम गुरु है, तत्पश्चात पुरोहित, शिक्षक आदि। मंत्रदाता को भी गुरु कहते हैं। 'गुरुत्व' के लिए वर्जित पुरुषों की सूची 'कालिकापुराण' में इस प्रकार दी हुई है- अभिशप्तमपुत्रच्ञ सन्नद्धं कितवं तथा। क्रियाहीनं कल्पाग्ड़ वामनं गुरुनिन्दकम्॥सदा मत्सरसंयुक्तं गुरुंत्रेषु वर्जयेत।गुरुर्मन्त्रस्य मूलं स्यात मूलशद्धौ सदा शुभम्॥ कूर्मपुर...